Welcome to Organiser Desk, Golden Words by our Organiser Sir - Late Shri R.U. Choubey

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आदर्श विद्यालय समर्पित

विद्यालय की स्थापना के प्रारंभिक समय में अनेक समस्याओं से संघर्ष करते हुए, उन पर विजय प्राप्त कर मैंने इस विशेष क्षेत्र को—जो उस समय शिक्षा के अभाव से ग्रस्त था—एक विशाल आदर्श विद्यालय देने का संकल्प लिया। आने वाली सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए मैं पूर्ण रूप से तैयार हुआ और अपने विद्यालय की सेवा में समर्पित हो गया।

संकल्प और सिद्धि पर मेरी दो पंक्तियाँ—

संकल्प की मजबूती ही ऐसी रही,
जो देश के भविष्य (बच्चों) को शिक्षा से संवारने की अभिलाषा बनी।
देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना रही,
तमन्ना भी एक माली की तरह पौधे लगाकर
उन्हें विशाल वृक्ष बनाने की रही।

आज मुझे अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है जब मेरे स्वप्न की तस्वीर साकार होती दिखाई दे रही है। मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि मेरा पूर्व संकल्प, मेरी विचारधारा आज सिद्धि की ओर अग्रसर हो रही है।

विद्यालय की स्थापना

मैंने सन 1986 में ओम विद्या मंदिर विद्यालय की स्थापना की। विद्यालय के विकास के लिए निरंतर परिश्रम करते हुए उसे श्रेष्ठ बनाने के लिए मैंने अथक प्रयास किए। बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करना और उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करना ही हमारा मुख्य उद्देश्य रहा है, ताकि वे विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल कर विद्यालय का नाम रोशन करें।

राष्ट्र धर्म — प्रधान धर्म

हमारे विद्यालय में सदैव राष्ट्र धर्म, आपसी सहयोग, प्रेम और सदाचरण की शिक्षा दी जाती रही है। विद्यालय में विद्यार्थियों के साथ-साथ अभिभावकों से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ अपने बच्चों को राष्ट्र धर्म की शिक्षा भी अवश्य दें।

विचारधारा

यदि किसी व्यक्ति का जीवन श्रेष्ठ होता है, तो वह उसकी अच्छी विचारशक्ति का परिणाम होता है। व्यक्ति के विचारों और सोच का स्पष्ट प्रतिबिंब उसके वास्तविक जीवन में दिखाई देता है। इसलिए मनुष्य को अपनी सोच और विचार सदैव उच्च रखने चाहिए।

शिक्षा

शिक्षा मनुष्य के जीवन में सदैव उन्नति लाती है। शिक्षा के अभाव में बच्चों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाती है, जबकि शिक्षा प्राप्त कर वही बच्चे शिष्ट और सभ्य बनते हैं तथा जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त करते हैं।

हमारी पहचान — हमारी भारतीय संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। शिक्षा इसे सहेज कर रखने में हमारी सहायता करती है। शिक्षा के कारण ही लिपि का आविष्कार हुआ और हमें ज्ञान की प्राप्ति हुई। हमारे देश में प्राचीन काल से ही कहा गया है—
“अनेकता में एकता” भारतीय संस्कृति की विशेष पहचान है।

वर्तमान समय में शिक्षा की नई पद्धति बच्चों के भविष्य को संवारने, संस्कृति को सहेजने तथा विचारधारा को उच्च बनाने का कार्य कर रही है।